एपिसोड 15: ‘द डायरी ऑफ़ गुल मोहम्मद’ – हुमरा कुरैशी

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चौदह-वर्षीय गुल मुहम्मद अपने माँ-बाप, दादी, और भाई गुलज़ार के साथ स्रीनगर में रहता है। साल २०१६ है, और हालात ठीक नहीं हैं। पिता का शॉल बेचने का काम है, मगर शॉल खरीदने वाले ग्राहक बचे ही नहीं हैं। फिर, गुल मुहम्मद के भाई गुलज़ार की एक आँख में सुरक्षा-कर्मियों के बन्दूक से दागे छर्रे लगते हैं और उस आँख की रौशनी ख़त्म हो जाती है। बिगड़ते हालात और आर्थिक तंगी से परेशान, गुल मुहम्मद के घर वाले उसको दिल्ली के एक मदरसे में भेज देते हैं, जहाँ से शुरू होता है उसके एक शहर से दुसरे कस्बे भटकने का सिलसिला, जिसका कोई अंत नहीं दिखता है। अगस्त २०१६ से सितम्बर २०१७ के बीच घटी अपनी आप-बीती का विवरण गुल मोहम्मद एक डायरी में लिखता जाता है। यही डायरी है, वरिष्ठ लेखक हुमरा कुरैशी का उपन्यास, ‘द डायरी ऑफ़ गुल मोहम्मद’। 

वरिष्ठ लेखक हुमरा कुरैशी का उपन्यास, ‘द डायरी ऑफ़ गुल मोहम्मद’। 

  1. इंस्टाग्राम पर हुमरा क़ुरैशी    
  2. ‘द डायरी ऑफ़ गुल मोहम्मद’ अमेज़न पर
  3. हुमरा क़ुरैशी द्वारा लिखी गईं अन्य पुस्तकें अमेज़न पर
  4. ‘काशीर — बींग अ हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर फ्रॉम द अरलिएस्ट टाइम्स टू आवर ओन’ अमेज़न पर


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