Himanshu Bhagat

Sambandh Ka Ke Ki


किताबों पर चर्चा, हिंदी में 

A conversation on books conducted in Hindi. 

हिमांशु भगत ने पंद्रह वर्षों तक क़िताब प्रकाशन व पत्रकारिता के क्षेत्रों में संपादन और लेखन का काम किया है।वे दिल्ली में रहते हैं।
Himanshu Bhagat has worked in the fields of book publishing and journalism as an editor and writer for 15 years. He lives in Delhi.

हर माह की पहली और पंद्रह तारीख को आपके लिए एक नई चर्चा
A new conversation on the 1st and 15th of every month.

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एपिसोड 23: ‘आइकोनिक ट्रीज़ ऑफ़ इंडिया’ — एस. नटेश

शहंशाह शाहजहाँ, टीपू सुल्तान, और मराठा साम्राज्य के आखरी पेशवा, बाजी राओ द्वितीय – इन्होंने कौन से पेड़ लगाए थे, जो आज भी जीवित हैं? भारत में कहाँ है दुनिया का सबसे बड़ा पेड़ जिसके नीचे एक बार में २०,००० आदमी खड़े हो सकते हैं? कहाँ है भारत का सबसे पुराना वृक्ष, जिसकी उम्र है २०२३ साल? किस पेड़ के नीचे गुरु नानक बैठे थे, और किसके नीचे रबिन्द्रनाथ टैगोर बैठे? किस पेड़ को महात्मा गाँधी ने लगाया था और किसको विश्व विख्यात एक्स्प्लोरर डेविड लिविंगस्टोन ने? इनमे से कुछ सवालों के जवाब आपको मिलेंगे डॉ एस. नटेश के साथ इस चर्चा में, और शेष सवालों के जवाब मिलेंगे उनकी किताब, ‘आइकोनिक ट्रीज ऑफ़...

एपिसोड 22: ‘राष्ट्र और नैतिकता − नए भारत से उठते 100 सवाल’ − राजीव भार्गव

दिल्ली के रिंग-रोड सड़क पर जब राजीव भार्गव की गाड़ी एक अन्य गाड़ी से टकराते-टकराते बची, तो अपनी गाड़ी से उतरकर उन्होंने दूसरी गाड़ी के ड्राइवर से पूछा, ‘क्या आपको मालूम है कि साइड रोड पर चलती गाड़ी को मेन रोड पर आती हुई गाड़ी के लिए रुकना होता है?’ दुसरे ड्राइवर ने जवाब दिया, ‘जो गाड़ी जिस रोड पर होती है, उसके लिए वही मेन रोड होता है।’ ऐसे ही व्यक्तिगत अनुभव, एवं देश और समाज की खबरें, इतिहास से लिए गए उदाहरण, और गाँधी व नेहरू जैसे हस्तियों के सोच के जरिये से डॉ भार्गव समकालीन भारत के नैतिक स्वास्थ का आकलन करते हैं, अपनी किताब ‘राष्ट्र और नैतिकता’ में। किताब में...

एपिसोड 21: ‘द रिपब्लिक रीलर्न्ट − रीन्यूइंग इंडियन डेमोक्रेसी − 1947 टू 2024’ − राधा कुमार

अपनी किताब में राधा कुमार कहती हैं कि भारत में पहले गणराज्य की स्थापना हुई थी १९४७ में, जब देश को आज़ादी मिली। वे ये भी कहती हैं कि २०१९ में − जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दोबारा एन. डी. ए. (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) की सरकार सत्ता में आई − तब भारत में ‘सेकंड रिपब्लिक’, यानी दूसरे गणराज्य की स्थापाना हो गई। वो इसलिए, क्योंकि इस प्रशासन के लक्ष्य, और उन लक्ष्यों को हासिल करने के तरीकों, का भारत के संविधान से वास्ता कम था। ये एक गंभीर आरोप है। राधा कुमार क्यों और किन तथ्यों के आधार पर ऐसा मानती हैं, ये जानने के लिए आप पढ़ सकते हैं उनकी पुस्तक ‘द रिपब्लिक रीलर्न्ट −...

एपिसोड 20: ‘द पावर प्लांट − फ़्रैगमेन्ट्स इन टाइम’ − रवि अगरवाल 

दिल्ली में महात्मा गाँधी की समाधी ‘राजघाट’ के निकट यमुना नदी के तट से सटा एक पावर प्लांट हुआ करता था जिसका उद्घटान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने १९६३ में किया था। पचास साल से ऊपर देश की राजधानी को बिजली प्रदान करने के बाद इस बिजली घर को बंद कर दिया गया। कारण था, शहर में प्रदुषण का प्रकोप, जिसमे योगदान था इसके चिमनियों से निकलते कोयले के धुंए का। रवि अगरवाल तेरह साल की उम्र में ही, हाथ में कैमरा लिए, इस बिजली घर के इर्द-गिर्द घूम चुके थे। इसके बंद होने के कुछ समय बाद रवि — अब एक जानेमाने पर्यावरण कार्यकर्ता और कलाकार की हैसियत से — कैमरों से लैस, इस वीरान कारखाने के अंदर...

एपिसोड 19: ‘द कलर्स ऑफ़ नैशनलिज़्म’ − नंदिता हक्सर

नंदिता हक्सर का जन्म नए-नए आज़ाद भारत के एक कुलीन परिवार में हुआ। उनके पिता आला सरकारी अफसर थे और नेहरू परिवार से उनके करीबी रिश्ते थे। मगर, कम उम्र से ही सत्ता से दूरी रखते हुए, नंदिता ने वक़ालत की पढ़ाई की और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बन गईं। आज़ादी के सात साल बाद जन्मी नंदिता के सपनों का भारत, सदैव पंडित नेहरू के समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का भारत रहा है। इन आदर्शों से प्रेरित हो, वे मानवाधिकार-हनन से पीड़ित भारतियों को न्याय दिलाने के काम में जुट गईं — चाहे वो हिंसा के साये में रहते भयभीत अल्पसंख्यक हों, सैनिक-शासन जैसे हालात के चपेट में आए पूर्वोत्तर के नागा निवासी हों, या...

एपिसोड 18: ‘कास्ट प्राइड — बैटल्स फॉर इक्वालिटी इन हिन्दू इंडिया’ — मनोज मित्ता    

११ जून १९९७ को मुंबई के घाटकोपर इलाके के रमाबाई नगर नाम के बस्ती में, पुलिस ने १० दलितों की गोली मर के हत्या कर दी। बस्ती में बाबासाहेब आंबेडकर की मूर्ति को किसी ने चप्पल की माला पहना दी थी और वहाँ के दलित निवासी इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। वहीं, १५ जून २००२ को, हरयाणा में दुलीना नाम के कस्बे में ‘गोरक्षक’ पाँच घायल दलितों को पुलिस चौकी में लाते हैं और गोहत्या के ‘जुर्म’ में उनको पीट-पीट कर मार देते हैं। पुलिस-कर्मी तमाशा देखते रहते हैं। क्यों था पुलिस का रवैया इतना फ़र्क, इन दोनो वाकयों में? जवाब आपको मिलेगा, मनोज मित्ता की किताब ‘कास्ट प्राइड — बैटल्स...

एपिसोड 17: ‘बीइंग हिन्दू, बीइंग इंडियन’ — वन्या वैदेही भार्गव  

अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस के डंडों के निर्मम प्रहार ने लाला लाजपत राय की जान ले ली। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेजी पुलिस अफसर जे. पी. सॉन्डर्स की गोली मार के हत्या कर दी, और फांसी पर चढ़ के देश के लिए शहीद हो गए। आज, लाला लाजपत राय की स्मृति शायद भगत सिंह के स्मृति के साये में रह गयी है। मगर लाजपत राय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, राज नेता, विचारक, और लेखक थे। वे आज़ाद भारत के निर्माताओं में से एक थे। हिन्दू समाज के सशक्तिकरण की बात करने वाले लाजपत राय, एक कट्टर ‘सेक्युलर’ यानी धर्मनिरपेक्ष थे। ये बातें बड़ी स्पष्टता से उजागर होती हैं, वन्या वैदेही भार्गव...

एपिसोड 16: ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ जॉर्ज फर्नांडेस’ — राहुल रामगुंडम  

जॉर्ज फर्नांडेस की छवि है, एक निर्भीक, प्रखर, बेबाक नेता की जिसने अपना राजनितिक सफर आरम्भ किया मात्र १९ वर्ष की उम्र में, समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित हो, कामगारों के हक़ की लड़ाई लड़ते हुए। और, साठ वर्ष पश्चात, उस सफर का अंत किया उन हिन्दूवादी राजनितिक ताकतों से पूरी तरह जुड़े हुए, जो भारत के राजनैतिक नक़्शे पर छाये हुए थे। एक अति-साधारण युवा जिसने सत्ता को निर्भीकता से ललकारा और उससे लोहा लिया, और एक वरिष्ठ राजनेता जो कई वर्षों तक स्वयं सत्ताधारी रहा — इन दो चरणों और उनके बीच की कहानी आपको मिलेगी, राहुल रामगुंडम की किताब ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ जॉर्ज फर्नांडेस’ में। ...

एपिसोड 15: ‘द डायरी ऑफ़ गुल मोहम्मद’ – हुमरा कुरैशी

चौदह-वर्षीय गुल मुहम्मद अपने माँ-बाप, दादी, और भाई गुलज़ार के साथ स्रीनगर में रहता है। साल २०१६ है, और हालात ठीक नहीं हैं। पिता का शॉल बेचने का काम है, मगर शॉल खरीदने वाले ग्राहक बचे ही नहीं हैं। फिर, गुल मुहम्मद के भाई गुलज़ार की एक आँख में सुरक्षा-कर्मियों के बन्दूक से दागे छर्रे लगते हैं और उस आँख की रौशनी ख़त्म हो जाती है। बिगड़ते हालात और आर्थिक तंगी से परेशान, गुल मुहम्मद के घर वाले उसको दिल्ली के एक मदरसे में भेज देते हैं, जहाँ से शुरू होता है उसके एक शहर से दुसरे कस्बे भटकने का सिलसिला, जिसका कोई अंत नहीं दिखता है। अगस्त २०१६ से सितम्बर २०१७ के बीच घटी अपनी आप-बीती का विवरण गुल...

एपिसोड 14 : ‘सिटी ऑन फायर-अ बॉयहुड इन अलीगढ़’ – ज़ेयाद मसरूर खान

ज़ेयाद मसरूर खान की किताब ‘सिटी ऑन फायर–अ बॉयहुड इन अलीगढ़’ उनके अलीगढ़ के पुराने इलाके, ऊपर कोट, में पलने-बढ़ने की कहानी है। उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ के इस कोने में, हिन्दू और मुसलमान एक दुसरे के अगल-बगल पुराने समय से रह रहे हैं। और शायद, हमको ये सुनके बहुत आश्चर्य नहीं होगा कि हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी यहाँ समय-समय पर होते रहे हैं। इसी सांप्रदायिक तनाव — जो जब-तब जानलेवा हिंसा का रूप ले लेता था — के बीच में बीते बचपन, किशोरावस्था, और जवानी के पहले-पहले सालों का ज्वलंत और जीवंत विवरण है ‘सिटी ऑन फायर’। एक्स (ट्विटर) और इंस्टाग्राम पर ज़ेयाद खान अमेज़न...

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