११ जून १९९७ को मुंबई के घाटकोपर इलाके के रमाबाई नगर नाम के बस्ती में, पुलिस ने १० दलितों की गोली मर के हत्या कर दी। बस्ती में बाबासाहेब आंबेडकर की मूर्ति को किसी ने चप्पल की माला पहना दी थी और वहाँ के दलित निवासी इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। वहीं, १५ जून २००२ को, हरयाणा में दुलीना नाम के कस्बे में ‘गोरक्षक’ पाँच घायल दलितों को पुलिस चौकी में लाते हैं और गोहत्या के ‘जुर्म’ में उनको पीट-पीट कर मार देते हैं। पुलिस-कर्मी तमाशा देखते रहते हैं। क्यों था पुलिस का रवैया इतना फ़र्क, इन दोनो वाकयों में? जवाब आपको मिलेगा, मनोज मित्ता की किताब ‘कास्ट प्राइड — बैटल्स फॉर इक्वालिटी इन हिन्दू इंडिया’ में। पिछले २०० सालों में, हिंदुस्तान में जाति-प्रथा और समाज में उसके प्रभाव को ले के बने क़ानूनों की कहानी है ‘कास्ट प्राइड’।
(‘सम्बन्ध का के की’ के टाइटिल म्यूज़िक की उपलब्धि, पिक्साबे के सौजन्य से।)