आज़ादी के ठीक बाद, १९५० व १९६० के दशक में छपने वाली लोकप्रिय हिंदी पत्रिकाओं में से दो थीं — ‘सरिता’ और ‘धर्मयुग’। क्या रिश्ता था और क्या असर रहा इन पत्रिकाओं का – और साथ-साथ, हिन्द पॉकेट बुक्स की बहुत किफायती दरों वाली किताबों का – अपने उत्तर-भारतिय हिंदी-भाषी मध्यम-वर्गिय पाठकों पर, इसका आकलन और विश्लेषण आपको मिलेगा डॉ आकृति मंधवानी की किताब ‘एवरीडे रीडिंग’ में। और साथ ही साथ मिलेगा, दिग्गज प्रकाशक और संपादक परेश नाथ, दिना नाथ मल्होत्रा, और धर्मवीर भारती के हिंदी भाषा के प्रसार और विकास में योगदान की कहानी। सुनिए डॉ मंधवानी के साथ एक चर्चा उनकी रोचक किताब ‘एवरीडे रीडिंग’ पर।
(‘सम्बन्ध का के की’ के टाइटिल म्यूज़िक की उपलब्धि, पिक्साबे के सौजन्य से।)






