ज़िन्दगी में उतराव-चढ़ाव को एक ही सिक्के के दो पहलु मानते हुए, प्रेम, सौहार्द, व भाईचारे के भावना को प्रधानता देते हुए, कार्यरत रहना चाहिए। ये बात समझ में आती है, भारत के थिएटर जगत और फिल्म जगत से जुड़े हुए जाने-माने हस्ती, एम. के. रैना के संस्मरण ‘बिफोर आई फॉरगेट’ को पढ़ के — चाहे वो आतंक के साये में घिरे, कर्फ्यू-ग्रस्त श्रीनगर में अपनी माँ की अंतिम क्रिया कर रहे हों; दिल्ली के १९८४ के दंगों में राहत कार्य में जुटे हों; बाबरी-मस्जिद-विध्वंस के बाद अयोध्या में शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित कर रहे हों; या आतंकवाद से ग्रस्त कश्मीर घाटी में भांड-पाथेर नाट्य शैली के पुनर्जागरण में जुटे हों। आइये सुनते हैं एक चर्चा एम. के. रैना के साथ उनकी पुस्तक ‘बिफोर आई फॉरगेट’ पर।
(‘सम्बन्ध का के की’ के टाइटिल म्यूज़िक की उपलब्धि, पिक्साबे के सौजन्य से।)

