अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस के डंडों के निर्मम प्रहार ने लाला लाजपत राय की जान ले ली। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेजी पुलिस अफसर जे. पी. सॉन्डर्स की गोली मार के हत्या कर दी, और फांसी पर चढ़ के देश के लिए शहीद हो गए। आज, लाला लाजपत राय की स्मृति शायद भगत सिंह के स्मृति के साये में रह गयी है। मगर लाजपत राय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, राज नेता, विचारक, और लेखक थे। वे आज़ाद भारत के निर्माताओं में से एक थे। हिन्दू समाज के सशक्तिकरण की बात करने वाले लाजपत राय, एक कट्टर ‘सेक्युलर’ यानी धर्मनिरपेक्ष थे। ये बातें बड़ी स्पष्टता से उजागर होती हैं, वन्या वैदेही भार्गव...
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View allजॉर्ज फर्नांडेस की छवि है, एक निर्भीक, प्रखर, बेबाक नेता की जिसने अपना राजनितिक सफर आरम्भ किया मात्र १९ वर्ष की उम्र में, समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित हो, कामगारों के हक़ की लड़ाई लड़ते हुए। और, साठ वर्ष पश्चात, उस सफर का अंत किया उन हिन्दूवादी राजनितिक ताकतों से पूरी तरह जुड़े हुए, जो भारत के राजनैतिक नक़्शे पर छाये हुए थे। एक अति-साधारण युवा जिसने सत्ता को निर्भीकता से ललकारा और उससे लोहा लिया, और एक वरिष्ठ राजनेता जो कई वर्षों तक स्वयं सत्ताधारी रहा — इन दो चरणों और उनके बीच की कहानी आपको मिलेगी, राहुल रामगुंडम की किताब ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ जॉर्ज फर्नांडेस’ में। ...
चौदह-वर्षीय गुल मुहम्मद अपने माँ-बाप, दादी, और भाई गुलज़ार के साथ स्रीनगर में रहता है। साल २०१६ है, और हालात ठीक नहीं हैं। पिता का शॉल बेचने का काम है, मगर शॉल खरीदने वाले ग्राहक बचे ही नहीं हैं। फिर, गुल मुहम्मद के भाई गुलज़ार की एक आँख में सुरक्षा-कर्मियों के बन्दूक से दागे छर्रे लगते हैं और उस आँख की रौशनी ख़त्म हो जाती है। बिगड़ते हालात और आर्थिक तंगी से परेशान, गुल मुहम्मद के घर वाले उसको दिल्ली के एक मदरसे में भेज देते हैं, जहाँ से शुरू होता है उसके एक शहर से दुसरे कस्बे भटकने का सिलसिला, जिसका कोई अंत नहीं दिखता है। अगस्त २०१६ से सितम्बर २०१७ के बीच घटी अपनी आप-बीती का विवरण गुल...
ज़ेयाद मसरूर खान की किताब ‘सिटी ऑन फायर–अ बॉयहुड इन अलीगढ़’ उनके अलीगढ़ के पुराने इलाके, ऊपर कोट, में पलने-बढ़ने की कहानी है। उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ के इस कोने में, हिन्दू और मुसलमान एक दुसरे के अगल-बगल पुराने समय से रह रहे हैं। और शायद, हमको ये सुनके बहुत आश्चर्य नहीं होगा कि हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी यहाँ समय-समय पर होते रहे हैं। इसी सांप्रदायिक तनाव — जो जब-तब जानलेवा हिंसा का रूप ले लेता था — के बीच में बीते बचपन, किशोरावस्था, और जवानी के पहले-पहले सालों का ज्वलंत और जीवंत विवरण है ‘सिटी ऑन फायर’। एक्स (ट्विटर) और इंस्टाग्राम पर ज़ेयाद खान अमेज़न...
अपनी माँ के देहांत के बाद, कुनाल पहाड़ों में स्थित बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने आता है, और वहाँ पहले कुछ महीने अपनी ‘आंटी’ तारा के साथ ठहरता है। तारा उसी स्कूल में म्यूज़िक टीचर है और वो खुद अभी तक अपनी प्रिय सखी, नीसा, के मौत से उबरी नहीं है। अपने प्रियजनों की मृत्यु से शोकागुल दो लोगों की कहानी है, लेखक नंदिता बासु की कृति, ‘स्टार्री स्टार्री नाईट’, यानि ‘तारों से जगमगाती रात’। ये उपन्यास एक ‘ग्राफ़िक नॉवेल’ है, अर्थात चित्र-कथा या कॉमिक-बुक शैली में लिखी गई है। टीवी और वीडियो गेम्स या ऑनलाइन गेमिंग के ज़माने से पहले बच्चे कॉमिक्स पढ़ते थे। फिर...
अगर कहीं उर्दू भाषा का ज़िक्र हो जाय, तो लोग उसकी तारीफ़ तो करते हैं, मगर अक्सर लगता है कि ये उर्दू-प्रेम महज शब्दों तक सीमित है। डॉक्टर रक्षंदा जलील अपनी किताब ‘उर्दू – द बेस्ट स्टोरीज़ ऑफ़ आवर टाइम्स’ के शुरुआती पन्नों में हिंदुस्तान में उर्दू के हाल पर सवाल तो उठाती हैं, मगर साथ-साथ हमको आश्स्वत भी करती हैं कि यहाँ उर्दू आज भी एक जीती-जागती, फलती-फूलती भाषा है। सादत हसन मंटो, इस्मत चुगताई, प्रेमचंद, और राजिंदर बेदी जैसे दिग्गज उर्दू लघु-कथा के लेखकों की दुनिया से आगे ले चलती, इस किताब में प्रस्तुत लघु-कहानियाँ मुख्यतः १९९० के बाद छपी हैं। इन कहानियों को चुना, और उनका अंग्रेज़ी...
जब १९८० के दशक में सम्राट चौधरी मेघालय की राजधानी शिलांग में पल-बढ़ रहे थे तो वहाँ के विधान-सभा भवन के दीवार पर किसी ने बड़े अक्षरों में लिख दिया था ‘खासी बाय ब्लड, इंडियन बाय एक्सीडेंट‘। मतलब — ‘मेरी पहचान, मेरा नस्ल, खासी है; हिंदुस्तानी तो महज इत्तेफ़ाक़ से हूँ।’ जब उनके दोस्त नागालैंड या मणिपुर से कलकत्ता, दिल्ली, या मुंबई आ रहे होते थे तो वे कहते थे, ‘हम इंडिया जा रहे हैं।’ पूर्वोत्तर भारत के उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के राजनितिक इतिहास को हम दो भागों में बाँट सकते हैं। पहला भाग — अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा इस क्षेत्र को भारत से जोड़ने का...
अगर आप की माँ आपसे कहती हों, बेटा, “मेक अ लिविंग,” मतलब अच्छा खाओ-कमाओ और इज़्ज़त-हैसियत के साथ जियो। और, उसके विपरीत, आपके पिता जी आपसे कहते हों, बेटा, “मेक अ लाइफ,” मतलब सार्थक ज़िन्दगी जियो, पैसे और शोहरत के पीछे मत भागो। तो आप क्या करेंगे? अगर आप गुरचरन दास हैं तो आप दोनों चीज़ करते हैं। व्यस्क ज़िन्दगी के पहले तीन दशकों में मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करके एक बेहद सफल करियर बनाते हैं। फिर ५२ साल की उम्र से एक लोकप्रिय लेखक और बुद्धजीवी के रूप में जाने जाते हैं। आइये सुनते हैं, गुरचरन दास के साथ उनके रोचक संस्मरण, अनदर सॉर्ट ऑफ़ फ्रीडम यानी एक अलग किस्म की आज़ादी पर एक चर्चा। ट्विटर पर...
दिल्ली से पूरब की ओर की ट्रेन या बस पकड़ने पर कानपूर-लखनऊ के आस-पास पहुँचने पर एक बॉर्डर आता है, जो मैप पर नहीं दिखता है — ‘मैं’ और ‘हम’ का बॉर्डर। इस सीमा को पार करने के बाद लोग ‘मैं’ की जगह ‘हम’ का प्रयोग करने लगते हैं और आप जान जाते हैं कि अब आप उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग को छोड़ कर राज्य के पूर्वी भाग में आ गए हैं। लखनऊ, कानपूर, बनारस और ईलाहबाद के अलावा ये क्षेत्र गोरखपुर जैसे अन्य छोटे शहरों का भी है। अपनी कहानियों की किताब ‘टाल टेल्स बाय अ स्माल डॉग’ में ओमैर अहमद गोरखपुर की संकरी गलियों और बीते हुए वक़्त में टहलते...
ईस्ट इंडिया कंपनी ने ११ सितम्बर सन १८०३ को पटपड़गंज की लड़ाई में मराठा ताकतों को हरा कर दिल्ली और उसके आसपास के छेत्रों पर कब्ज़ा पा लिया और इसके साथ ही दिल्ली के इतिहास में अंग्रेज़ी हुकूमत का दौर आरम्भ हुआ। एक तरफ लाल किले पर तख्तनशीन मुग़ल बादशाह शाह आलम, अकबर और बहादुर शाह ज़फर, और एक तरफ डेविड ऑक्टरलोनी, चार्ल्स मेटकाफ, और विलियम फ़्रेज़र जैसे अंग्रेज़ी रेज़िडेंट हुक्मरान। एक तरफ मिर्ज़ा ग़ालिब, मोमिन, और ज़ौक़, तो एक तरफ देल्ही कॉलेज से जुड़े गणितज्ञ मास्टर राम चन्दर, और विद्वान सर सय्यद अहमद खान। नए स्कूल और कॉलेज, ज्ञान-विज्ञान, प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ, और अख़बार की दिल्ली में...